Tuesday, September 23, 2008

जागो इंडिया जागो

रामायण के विशिष्ट पात्र कुंभकरण को याद करते हुए जागो इंडिया जागो की शुरुआत करते है जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 की घटना इसका आधार है। आजाद भारत की लोकतांत्रिक सरकार आज भी उन्हें स्वतंत्रता सेनानी नहीं मानती। क्या आंखों और दिमाग को विश्वास नहीं हो रहा ? लेकिन यही सच्चाई है। प्रमाण उपलब्ध हैं। लेकिन ऐसा क्यों है ? यही तो सवाल खुद से है। देशवासियों से है। ऐसा क्यों ? अंग्रेजों की गोलियों से भूने गए लोगों को पूरा देश शहीद मानता है। स्वतंत्रता सेनानी (फ्रीडम फाइटर) स्वीकारता है। फिर भी वह सरकारी तौर पर आज तक फ्रीडम फाइटर नहीं है। ऐसा क्यों? इस मुद्दे के जरिए देश की जागृति के लिए है अभियान - जागो इंडिया जागो।
जी हां। हम खुद जगने की कोशिश में है। एक - दूसरे के सहारे जगाए जाने का भरोसा लगाए बैठे हैं। जगने और जगाने का सामूहिक प्रयास शुरु होना उद्देश्य है। महाबली कुंभकरण के बारे में प्रसिद्ध है कि वह छह महीने सोते थे। हम भी पिछले 61 सालों से सोए पड़े हैं। अंग्रेजों से आजादी मिले इतने दिन गुजर चुके हैं। फिर भी जलियांवाला बाग के शहीद सरकारी तौर पर फ्रीडम फाइटर नहीं हैं तो जवाबदेह कौन है? क्या सिर्फ नेता? क्या सिर्फ नौकरशाह? हमारी कोई जवाबदेही नहीं है? शहीदों को अगर सम्मान का दर्जा नहीं मिला है तो हर हिंदुस्तानी जवाबदेह है। यही है विषय जगने और जगाने का। देश इस मुद्दे पर क्यों सो गया? मानो आजादी मिल गई और हम हसीन सपनों में खो गए। यह सबसे खतरनाक है। सोए हुए को जगाया जा सकता है। लेकिन जो जागते हुए सोए, सोने का नाटक करे, महटियाए, उसको जगाना हमेशा नामुमकिन रहा है। है न ! इसलिए लिखा, जगना और जगाना है। अगर सभी मिल जुलकर एक - दूसरे को जगाएंगे तो शायद जग जाएं। समीक्षा कर पाएं कि क्यों पिछले 60 सालों से जागते हुए सो रहा है अपना देश। जलियांवाला बाग तो सिर्फ एक बहाना है। आजादी की लड़ाई में 30 लाख साधु संतो और 10 लाख से अधिक फकीरों ने कुर्बानी दी। स्कूली इतिहास के पन्नों में कहीं इसका उल्लेख नहीं मिलता। नेतागिरी और नौकरशाही के चक्कर में देश का आत्मसम्मान नहीं जगा सके। देश जीवंत नहीं हो सका। इसलिए जरुरी है जगना और जगाना। यह काम कोई एक नहीं कर सकता। किसी एक के बस की बात भी नहीं है। डर है कि कहीं कुंभकरण जैसी नींद के कारण महाबली होते हुए भी देश का अंत न हो जाए। पतन न हो जाए। जाति, धर्म, संप्रदाय, पंथ आदि के नाम पर पूरा देश बंट गया है। हर व्यक्ति बाजार में अकेला खड़ा है। सूई से लेकर पहाड़ तक भ्रष्टाचारियों के कब्जे में है। सबकुछ ठेके पर जा रहा है। रोड, सीवरेज, सेहत, शिक्षा, सबकुछ। हरेक चीज की बोली लग रही है। दलाली हो रही है। अरबों के ठेके में करोड़ों के कमिशनखोरी। सब जायज बनता जा रहा है। बचाव का रास्ता सिर्फ देश के प्रति जागरुक जनता ही तैयार कर सकती है। इसलिए जरूरी है कि जागो और जगाओ। जागो इंडिया जागो।

2 comments:

Unknown said...

भाई सतीश। ब्लाग की दुनिया में स्वागत है। अमृतसरी नान की तरह पूरा ब्लाग ही झन्नाटेदार है। यही उम्मीद मी थी। अब कुछ सवाल।
आजादी के ६० साल बाद जालियांवाला बाग के शहीदों को फ्रीडम फाइटर का सरकारी दरजा किस चाहिए। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को नोबल पुरस्कार नहीं मिला, इससे कौन अपमानित हैं महात्मा गांधी, उनका दशॆन या नोबल पुरस्कार। रामायण के प्रतीक कुंभकरण से अपनी कथा सुनाने की कोशिश कर रहें मेरे भाई फ्रीडम फाइटर का सरकारी पट्टा किसे चाहिए, इस सवाल का जवाब चाहिए जनाब। किताबों में अभी भी शहीद ए आजम भगत सिहं को आतंकवादी कहकर पढ़ाया जाता है। यह क्या है जनाब?

जागो इंडिया जागो said...

आपके सवालों में ही जवाब छिपा है। आपने दो नामों का उल्लेख किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और शहीदे आजम भगत सिंह। आम तौर पर हम इनके बीच कोई तालमेल नहीं देख पाते। आप देख सके। हम धन्यवादी हैं। दोनों हमारी आजादी के मार्ग दर्शक हैं। दोनों की ही सही तस्वीर देशवासियों के समक्ष नहीं है। इसी लिए तो जगना है मेरे दोस्त ! गांधी और उनके दर्शन के साथ नाम नहीं जुड़े होने के कारण 20वीं शताब्दी में नोबेल पुरस्कार को बार-बार अपमानित होना पड़ा। 21वीं शदी में भी यह सवाल पीछा नहीं छोड़ रहा। भगत सिंह द्वारा जेल में सृजित साहित्य और दर्शन उन्हें पंथ, मजहब और (आतंक) वाद में बांधने की कोशिश करने वालों को मुंहतोड़ जवाब देता है। महात्मा गांधी और भगत सिंह की संवेदनाओं को यह देश जिस दिन समझ लेगा, जगाने की जरूरत नहीं रह जाएगी। जलियांवाला बाग के शहीदों की लाशें तो उसी समय जला दी गईं या दफना दी गईं। जो दफनाई गईं, वह सड़-गल चुकी होंगी। उनकी लाशों की नहीं, देश के प्रति उनकी संवेदनाओं को मान देने की बात है। 13 अप्रैल 1919 के शहीदों को फ्रीडम फाइटर नहीं मानकर सरकार ने वही किया है जो अंग्रेजों ने किया। जो काम सत्ता पर काबिज कोई भी चरित्र करता है। लेकिन ऐसा तभी तक होता है जबतक जनता जागते नहीं। नेताओं और नौकरशाहों के पट्टे की जरूरत नहीं। एक बार जनता जाग गई तो उनके नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वालों को अपना लंगोट संभालने का भी मौका नहीं मिलेगा। इसलिए कहा, जागो इंडिया जागो।