बताने की जरूरत नहीं कि आयरन का संबंध शरीर में हीमोग्लोबिन से है। इसी संदर्भ के साथ चर्चा शुरू करते हैं। वैज्ञानिक अध्ययन साबित कर चुके हैं कि शरीर में एक ग्राम कम होने से मानव शरीर की कार्यक्षमता पांच प्रतिशत कम हो जाती है। व्यक्ति के खून में कम से कम बारह ग्राम हीमोग्लोबिन होना चाहिए। अगर किसी के खून में आठ ग्राम हीमोग्लोबिन है तो समझ लें कि उसकी बीस प्रतिशत कार्यक्षमता घट गई है। अर्थात् देश की जनता में अगर औसत रूप से हीमोग्लोबिन की कमी है तो लाखों - करोड़ मानव दिवस की कार्यक्षमता घटती है।
इसी तरह बच्चों और खास कर लड़कियों को आयरन की खुराक जरूरी है। आनेवाली पीढ़ी को ध्यान में रखते हुए इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बाल और जननी मृत्यु दर को कम करने के लिए आयरन जरूरी है। परंतु असल समस्या कार्यक्रम को सही तरीके से लागू करने से जुड़ी है। इसको नाकाम करने के षड़यंत्रों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। स्कूल में पैक्ड फूड वितरण के लिए लगातार जोर लगा रही बहुराष्ट्रीय कंपनियां यह पचा नहीं पा रहीं कि बच्चों को ताजा बना खाना मिले। खिचड़ी की पौष्टिकता प्रमाणित होने के बाद और बेचैनी है।
एक खुराक खतरनाक --
आयरन की बात करें तो व्यक्ति या बच्चे के प्रतिकिलो ग्राम भार पर तीन से चार मिलीग्राम आयरन दिया जा सकता है परंतु एक खुराक प्रतिकिलो वजन पर डेढ़ से दो मिलीग्राम (एमजी) की ही होनी चाहिए। स्कूल में बच्चों को अनजाने में छह मिलीग्राम प्रति तक किलो वजन के हिसाब से आयरन की खुराक दी जा रही है जिसका डॉक्टर पहले ही विरोध कर चुके हैं। डब्ल्यूएचओ के पास सप्ताह में एक खुराक का भले ही कोई आधार होगा, शिशुरोग विशेषज्ञों के पास इसका कोई आधार नहीं है। किताबों में इसका कहीं भी उल्लेख नहीं है। सिंगल डोज में साइड इफेक्ट का काफी खतरा रहता है।
खाने से पहले जरूरी---
मेडिकल की किताबें कहती हैं कि खाली पेट ही आयरन की खुराक फायदेमंद है। खासकर गेहूं सेवन करने वाले लोगों के लिए। गेहूं में फाइटेट्स, दूध में कैल्सियम और चाय में टैनिन्स आयरन को अपने में अवशोषित कर लेते हैं। इसलिए रोटी खाने के बाद आयरन की गोली का कोई फायदा नहीं। भले ही साइड इफेक्ट नहीं हो परंतु बच्चे की एनिमिया दूर नहीं हो सकती। यद्यपि चावल खाने के बाद भी आयरन लें तो फायदा करता है।
फेरस फ्यूमरेट क्यों नहीं ---
स्कूल में बच्चों को आयरन गोली में फेरस सल्फेट दिया जा रहा है। जहरीला और हानिकार घोषित होने के कारण यह साल्ट (फेरस सल्फेट) खुले बाजार में नहीं मिलता। इसकी जगह पर फेरस फ्यूमरेट कम साइड इफेक्ट वाला है। महंगा •ाी नहीं है परंतु सरकार इसपर गौर नहीं कर रही।
एक दिन की समस्या नहीं
दवा के कुप्रभाव के आकलन की व्यवस्था का न होना काफी चिंताजनक है। एडवर्स ड्रग रिएक्शन मानिटरिंग (एडीआरएम) सेल की उपेक्षा दुर्गभाग्यपूर्ण है। पिछले कई वर्षों से यह समस्या है। हर वर्ष बच्चे बीमार पड़ते हैं। अगर पहले ही समीक्षा कर खुराक में परिवर्तन कर दिया गया होता तो सरकार की बदनामी नहीं होती। बच्चों में •ाय नहीं बैठता। माता-पिता बेचैन नहीं होते।
प्रशिक्षित लोग वितरित करें
आयरन की खुराक प्रशिक्षित सेहत कर्मचारी की देखरेख में ही दी जानी चाहिए। इसके लिए शिक्षकों की जिम्मेदारी लगाना उचित नहीं। यह ओटीसी (आन काउंटर सेल) ड्रग नहीं है। इस कार्यक्रम का राजनीति से भी कोई रिश्ता नहीं होना चाहिए। इसे निरंतर संचालित किया जाना जरूरी है। डॉक्टरों और शिक्षकों के साथ मारपीट और दुर्व्यवहार गलत है। एंबुलेंस तोड़ने से फायदा नहीं होगा। मिड डे मील की गुणवत्ता को सुधारने के लिए लोग स्थानीय स्तर पर निरीक्षण करें। आयरन का दस से बीस फीसदी साइड इफेक्ट संभावित है। इसपर चिंता करने की जरूरत नहीं। साइड इफेक्ट से बचने के लिए भरे पेट में आयरन लेने से कम मात्रा में खाली पेट आयरन लेना ही अच्छा है।
गेन से सावधान रहें
कुछ कंपनियां ताजा पका खाना की जगह पैकेट वाले खाने की वकालत कर रही हैं जिनमें आयरन का स्पिंकलर होंगे। अलग से आयरन खुराक देने की जरूरत नहीं होगी। गेन (ग्लोबल एलायंस फार इंफैंट न्यूट्रिशन) संस्था का काफी दबाव है। इसके लागू होने का ही ज्यादा खतरा है। आयरन की अधिक मात्रा देकर लोगों में दहशत पैदा करने और गैर डाक्टर द्वारा तरह तरह के सलाह एक अच्छे कार्यक्रम को गलत व्यवस्था के जरिए गला घोटने के प्रयास के समान हैं। यह साबित हो चुका है कि ताजा पका खाना ज्यादा लाभकारी है। पैकेट वाले खाने से खिचड़ी कहीं ज्यादा पौष्टिक है। सुप्रीम कोर्ट तक इस बात को स्वीकार चुका है। सामाजिक जागरूकता से ही जनहित के इस कार्यक्रम को बचाया जा सकता है।